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जानिए भरतनाट्यम के बारे मेंं!

  भरतनाट्यम या चधिर अट्टम मुख्‍य रूप से दक्षिण भार की शास्‍त्रीय नृत्‍य शैली है। यह भरत मुनि के नाट्य शास्‍त्र पर आधारित हे। वर्तमान में इस नृत्‍य शैली का अभ्‍यास मुख्‍य रूप से महिलाएं करती हेा। भरतनाट्यम को सबसे प्राचीन नृत्‍य माना जाता है। भरतनाट्यम में नृत्‍य के तीन मूलभूत तत्‍वों को कुशलतापूर्वक शामिल किया गया हे। पहला है भाव तथा मन: स्थिति दूसरा है राग अथवा संगीत और तीसरा है ताल। भरतनाट्यम अनुदादी है जिसमें नर्तक को बहुत मेहनत करनी होती है। इस नृत्‍य की तकनीक में हाथ , पैर , मुख्‍य व शरीर के संचालन के समन्‍वयन के 64 सिद्धांत हेा , जिनका निष्‍पादन नृत्‍य पाठ्यक्रम के साथ किया जाता हे। इस नृत्‍य में जीवन के तीन मूल तत्‍व-दर्शन शास्‍त्र , धर्म व विज्ञान हैं। भरतनाट्यम , नृत्‍य और अभिनय दो अंशो में सम्‍पन्‍न होता है। इसकी शरीरिक क्रियाओं को समभंग , अभंग और त्रिभंग तीन भागों में बांटा जाता है। नृत्‍य शरीर के अंगों से उत्‍पन्‍न होता है इसमें रस , भाव और काल्‍पनीक अभिव्‍यक्ति जरूरी है।

The Power of Determination by Burt Dubin

  The little country schoolhouse was heated by an old-fashioned, pot-bellied coal stove. A eight-year-old boy named Glenn Cunningham had the job of coming to school early each day so that he could use kerosene to start the fire and warm the room before his teacher and his classmates arrived. One cold morning someone mistakenly filled the kerosene container he used with gasoline, and disaster struck. The class and teacher arrived to find the schoolhouse engulfed in flames. Terrified on realizing that Glenn was inside, they rushed in and managed to drag the unconscious little boy out of the flaming building more dead than alive. He had major burns over the lower half of his body and was taken to a nearby county hospital. From his bed, the dreadfully burned, semi-conscious little boy faintly heard the doctor talking to his mother. The doctor told his mother that her son would surely die – which was for the best, really – for the terrible fire had devastated the lower half of his body.

Light the Lamp of Thy Love - Rabindranath Tagore

    Light the Lamp of Thy Love In my house, with thine own hands, Light the lamp of Thy Love! Thy Transmuting Lamp entrancing, Wondrous are its rays. Change my darkness to Thy light, Lord! Change my Darkness to Thy light, And my evil into good Touch me but once and I will change, All my clay into thy gold All the sense lamps that I did light Sooted into worries Sitting at the door of my soul Light Thy resurrecting lamp!   Word Meaning Transmuting - बदलना   Entrancing - मनोहर Wondrous - चमत्‍कारी Darkness – अंधकार , अज्ञानता Evil – अशुभ , बुरा Sooted – काजल Sense lamps – 5 इंद्रिया Worries – चिंता , दुख Resurrecting- पुर्नजीवित होना  

मप्र के पहले आदवासी मुख्‍यमंत्री - राजा नरेशचंद्र सिंह

  Raja Nareshchandra singh राजा नरेशचंद्र सिंह   राजा नरेशचंद्र सिंह ( 21 नवंबर 1908 - 11 सितंबर 1987), छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में सारंगढ़ रियासत के शासक थे। उन्होंने अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया । राजा नरेशचंद्र सिंह 1 जनवरी 1948 को अपने राज्य सारंगढ़ रियासत के अंतिम शासक थे , भारत संघ में विलय होने तक । सारंगढ अब मध्य भारत के छत्तीसगढ़ के आधुनिक राज्य का एक हिस्सा है।   उन्होंने 1951 से 1957 के चुनाव में सारंगढ़ विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया और 1962 और 1967 में पुसोर विधानसभा का प्रतिनिधित्‍व किया। वह पंडित रविशंकर शुक्ला के मंत्रालय में 1952 में कैबिनेट मंत्री थे। उन्हें मप्र में आदिवासी कल्याण का पहला मंत्री बनाया गया था। 1955 में और 1969 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने तक इस पद पर बने रहे (13 मार्च 1969 से 25 मार्च 1969)   जिस तरह से राजनीति की जाने लगी थी , उससे नाराज होकर उन्होंने मुख्यमंत्री के अपने पद से , राज्य विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और राजनीति छोड़ दी। अपने बाद के वर्षों में उन्होंने छत्तीसगढ़ में लोगों क

52 किले जितने वाला राज - संग्राम शाह

Sangram shah संग्राम शाह   परिचय :- संग्राम शाह   (1482-1532 ) भारत के मध्य प्रदेश राज्य में गोंडवाना के गढ़ा साम्राज्य के राजा थे। अपने शासनकाल के दौरान उसने अपने राज्य को मजबूत करने के लिए 52 किलों पर विजय प्राप्त की थी। उनका असली नाम आम्‍रण (अमन)   दास था , 52 गढ़ों पर विजय प्राप्त करने के बाद , उन्होंने खुद को संग्राम शाह नाम दिया। संग्राम शाह , जो मध्य भारत में गोंड वंश के थे , वे राजवंश 48वें शासक थे , उन्‍होंने अपने पिता कि गद्दी को संभाला , उनके पिता का नाम अजुनसिंह शाह था।   खा़स बाते संग्राम शाह के 52 किलों को जीतने के लिए , नरसिंहपुर में चौरागढ़ किला उनके सम्मान में बनाया गया। वह एक वीर और पराक्रमी राजा था। वह अपने पूरे जीवन में कभी पराजित नहीं हुआ था। संग्राम शाह कला और साहित्य के संरक्षक के रूप में जाने जाते थे और उन्हें संस्कृत का बहुत ज्ञान था "रसरत्नमाला" उनके द्वारा लिखा गया था। उनके सबसे बड़े बेटे दलपत शाह ने रानी दुर्गावती से शादी की। दलपत शाह ने शांतिपूर्वक शासन किया। उनकी मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने शासन संभाला , संग्राम शाह कि मृत्

जनगढ़ सिंह श्याम एक जादुई आदीवासी कलाकार !

 Tribal Personalities  जनजातीय शख़्सियत  'जनगढ़ सिंह श्याम'  परिचय -  जनगढ़ सिंह श्याम जी का जन्‍म पाटनगढ़ जो कि डिंडोरी जिले में , के प्रधान गोंड परिवार में हुआ था। उन्‍होंने बचपन से हि बहुत गरीबी का सामना किया, गरीबी के चलते उन्‍हें स्‍कूल छोड़ना पड़ा, वे भैंस चराते थे और पास के गॉवों में दुध बेचते थे। सोलह साल की उम्र में उन्होंने सोनपुर गांव की नंकुसिया बाई से शादी की ; जो बाद में उनकी साथी कलाकार बनी। अपनी शादी के कुछ साल बाद, कला संग्रहालय भारत भवन के टैलेंट स्काउट्स ने जनगढ़ सिंह श्याम जी  से संपर्क किया। पहचान  जगदीश स्वामीनाथन ने जंगगढ़ को भोपाल में एक पेशेवर कलाकार के रूप में आने और काम करने के लिए प्रेरित किया। फरवरी 1982 में भारत भवन की उद्घाटन प्रदर्शनी में जंगगढ़ की पहली नमूना पेंटिंग प्रदर्शित की गई। जल्द ही जंगगढ़ को भारत भवन के ग्राफिक कला विभाग में नियुक्त किया गया। उन्होंने जल्दी ही प्रसिद्धि प्राप्त की, जब 1986 में, उनकी 'खोज' के केवल पांच साल बाद, छब्बीस वर्षीय को शिखर सम्मान (शिखर सम्मान) से सम्मानित किया गया - जो मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया जान

जानिए गोवा कि सबसे खुबसूरत इमारत के बारे में

    जानिए गोवा कि सबसे खुबसूरत इमारत के बारे में गोवा की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित धार्मिक इमारतों में से यह 16 वीं शताब्दी का भव्य स्मारक है , जिसे पुर्तगाल शासन के दौरान रोमन कैथोलिक ने बनवाया था । यह एशिया का सबसे बड़ा चर्च है । यह कैथेड्रल एलेक्सेंड्रिया की सेंट कैथरीन को समर्पित है । सेंट कैथरीन के भोज के दिन 1510 ई . में अल्फोंसो डी अल्बुकर्क ने मुस्लिम सेना को पराजित किया और गोवा शहर का स्वामित्व लिया । अतः इसे सेंट कैथरीन का कैथेड्रल भी कहते हैं और यह पुर्तगाल में बने किसी भी चर्च से बड़ा है । इसके विशाल मुक्त द्वार का निर्माण 1562 में किंग डोम सेबास्टियो ( 1557-78 ) ने करवाया था । इसे 1619 में काफी हद तक पूरा किया गया था और 1640 में इसे अर्पित किया गया । यह चर्च 250 फीट लंबा और 181 फीट चौड़ा है । इसका अगला हिस्सा 115 फीट ऊंचा है । यह भवन पुर्तगाली - गोथिक शैली में टस्कन बाह्य सज्जा तथा कोरिथयन अंदरुनी सज्जा के साथ बनाया गया है । कैथेड्रल का बाह्य हिस्सा शैली की सादगी के लिए उल्लेखनीय है ।