मलेरिये कि दवाई
वाला पेंड़
कुनैन के पेड़ को ज्वर छाल वृक्ष भी
कहते हैं , क्योंकि यह सबसे पुराना और महत्त्वपूर्ण
मलेरिया रोधी ड्रग क्वीनीन ( कुनैन ) का स्रोत है। ड्रग इस पेड़ की छाल से प्राप्त
होती है। यह पादप एक सदाहरित वृक्ष है , जो 700 से 2750
मीटर तक की ऊंचाई पर उगता है। इसके लिए ठडी पहाड़ी , जहां ठीक प्रकार
उगता है। इसके लिए ठंडी पहाड़ी ढलाने चाहिए , जहां ठीक प्रकार
से वितरित वर्षा 200 से.मी. से ऊपर हो। पादप हल्की , जल निकासी वाली
अक्षत वन्य मिट्टी में सबसे अच्छा उगते हैं , जो ह्यूमस से
भरपूर हो और जिसका pH 4.5 से 6.5 के बीच हो।
कुनैन वृक्ष ( सिनकोना ) की कई जातियां
हैं , जिनसे औषधि निकलती हैं , लेकिन सबसे ज्यादा उत्पादन लेजर छाल वृक्ष ( सिनकोना लेजरियाना ) से
होता है। कुनैन वृक्ष जातियों से करीब 30 ऐल्कोलॉइड अलग किए जा चुके हैं, जिनमें से क्विनीन, क्विनीडीन , सिनकोनीन और सिनकोनिडीन सबसे मुख्य हैं। मूल छाल में ऐल्केलॉइडों की
अधिकतम मात्रा होती है, लेकिन क्विनीन
की सबसे अधिक मात्रा तना छाल में होती है। फिर भी कुछ संश्लेषित मलेरिया रोधी
औषधियां बाजार में उपलब्ध है।
सिनकोना मुख्यत:
दक्षिणी अमरीका में ऐंडीज पर्वत, पेरू तथा
बोलीविया के ५,००० फुट अथवा
इससे भी ऊँचे स्थानों में इनके जंगल पाए जाते हैं। पेरू के वाइसराय काउंट सिंकन की
पत्नी द्वारा यह पौधा सन् १६३९ ई. में प्रथम बार यूरोप लाया गया और उन्हीं के नाम
पर इसका नाम पड़ा। सिनकोना भारत में पहले पहले १८६० ई. में सर क्लीमेंट मारखत
द्वारा बाहर से लाकर नीलगिरि पर्वत पर लगाया गया। सन् १८६४ में इसे उत्तरी बंगाल
के पहाड़ों पर बोया गया। आजकल इसकी तीन जातियाँ सिनकोना आफीसिनेलिज (C. Officinalis), सिनकोना (C. Succirubra) पर्याप्त मात्रा में उपजाई जाती हैं।
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