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Showing posts from July, 2021

मप्र के पहले आदवासी मुख्‍यमंत्री - राजा नरेशचंद्र सिंह

  Raja Nareshchandra singh राजा नरेशचंद्र सिंह   राजा नरेशचंद्र सिंह ( 21 नवंबर 1908 - 11 सितंबर 1987), छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में सारंगढ़ रियासत के शासक थे। उन्होंने अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया । राजा नरेशचंद्र सिंह 1 जनवरी 1948 को अपने राज्य सारंगढ़ रियासत के अंतिम शासक थे , भारत संघ में विलय होने तक । सारंगढ अब मध्य भारत के छत्तीसगढ़ के आधुनिक राज्य का एक हिस्सा है।   उन्होंने 1951 से 1957 के चुनाव में सारंगढ़ विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया और 1962 और 1967 में पुसोर विधानसभा का प्रतिनिधित्‍व किया। वह पंडित रविशंकर शुक्ला के मंत्रालय में 1952 में कैबिनेट मंत्री थे। उन्हें मप्र में आदिवासी कल्याण का पहला मंत्री बनाया गया था। 1955 में और 1969 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने तक इस पद पर बने रहे (13 मार्च 1969 से 25 मार्च 1969)   जिस तरह से राजनीति की जाने लगी थी , उससे नाराज होकर उन्होंने मुख्यमंत्री के अपने पद से , राज्य विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और राजनीति छोड़ दी। अपने बाद के वर्षों में उन्होंने छत्तीसगढ़ में लोगों क

52 किले जितने वाला राज - संग्राम शाह

Sangram shah संग्राम शाह   परिचय :- संग्राम शाह   (1482-1532 ) भारत के मध्य प्रदेश राज्य में गोंडवाना के गढ़ा साम्राज्य के राजा थे। अपने शासनकाल के दौरान उसने अपने राज्य को मजबूत करने के लिए 52 किलों पर विजय प्राप्त की थी। उनका असली नाम आम्‍रण (अमन)   दास था , 52 गढ़ों पर विजय प्राप्त करने के बाद , उन्होंने खुद को संग्राम शाह नाम दिया। संग्राम शाह , जो मध्य भारत में गोंड वंश के थे , वे राजवंश 48वें शासक थे , उन्‍होंने अपने पिता कि गद्दी को संभाला , उनके पिता का नाम अजुनसिंह शाह था।   खा़स बाते संग्राम शाह के 52 किलों को जीतने के लिए , नरसिंहपुर में चौरागढ़ किला उनके सम्मान में बनाया गया। वह एक वीर और पराक्रमी राजा था। वह अपने पूरे जीवन में कभी पराजित नहीं हुआ था। संग्राम शाह कला और साहित्य के संरक्षक के रूप में जाने जाते थे और उन्हें संस्कृत का बहुत ज्ञान था "रसरत्नमाला" उनके द्वारा लिखा गया था। उनके सबसे बड़े बेटे दलपत शाह ने रानी दुर्गावती से शादी की। दलपत शाह ने शांतिपूर्वक शासन किया। उनकी मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने शासन संभाला , संग्राम शाह कि मृत्

जनगढ़ सिंह श्याम एक जादुई आदीवासी कलाकार !

 Tribal Personalities  जनजातीय शख़्सियत  'जनगढ़ सिंह श्याम'  परिचय -  जनगढ़ सिंह श्याम जी का जन्‍म पाटनगढ़ जो कि डिंडोरी जिले में , के प्रधान गोंड परिवार में हुआ था। उन्‍होंने बचपन से हि बहुत गरीबी का सामना किया, गरीबी के चलते उन्‍हें स्‍कूल छोड़ना पड़ा, वे भैंस चराते थे और पास के गॉवों में दुध बेचते थे। सोलह साल की उम्र में उन्होंने सोनपुर गांव की नंकुसिया बाई से शादी की ; जो बाद में उनकी साथी कलाकार बनी। अपनी शादी के कुछ साल बाद, कला संग्रहालय भारत भवन के टैलेंट स्काउट्स ने जनगढ़ सिंह श्याम जी  से संपर्क किया। पहचान  जगदीश स्वामीनाथन ने जंगगढ़ को भोपाल में एक पेशेवर कलाकार के रूप में आने और काम करने के लिए प्रेरित किया। फरवरी 1982 में भारत भवन की उद्घाटन प्रदर्शनी में जंगगढ़ की पहली नमूना पेंटिंग प्रदर्शित की गई। जल्द ही जंगगढ़ को भारत भवन के ग्राफिक कला विभाग में नियुक्त किया गया। उन्होंने जल्दी ही प्रसिद्धि प्राप्त की, जब 1986 में, उनकी 'खोज' के केवल पांच साल बाद, छब्बीस वर्षीय को शिखर सम्मान (शिखर सम्मान) से सम्मानित किया गया - जो मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया जान

जानिए गोवा कि सबसे खुबसूरत इमारत के बारे में

    जानिए गोवा कि सबसे खुबसूरत इमारत के बारे में गोवा की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित धार्मिक इमारतों में से यह 16 वीं शताब्दी का भव्य स्मारक है , जिसे पुर्तगाल शासन के दौरान रोमन कैथोलिक ने बनवाया था । यह एशिया का सबसे बड़ा चर्च है । यह कैथेड्रल एलेक्सेंड्रिया की सेंट कैथरीन को समर्पित है । सेंट कैथरीन के भोज के दिन 1510 ई . में अल्फोंसो डी अल्बुकर्क ने मुस्लिम सेना को पराजित किया और गोवा शहर का स्वामित्व लिया । अतः इसे सेंट कैथरीन का कैथेड्रल भी कहते हैं और यह पुर्तगाल में बने किसी भी चर्च से बड़ा है । इसके विशाल मुक्त द्वार का निर्माण 1562 में किंग डोम सेबास्टियो ( 1557-78 ) ने करवाया था । इसे 1619 में काफी हद तक पूरा किया गया था और 1640 में इसे अर्पित किया गया । यह चर्च 250 फीट लंबा और 181 फीट चौड़ा है । इसका अगला हिस्सा 115 फीट ऊंचा है । यह भवन पुर्तगाली - गोथिक शैली में टस्कन बाह्य सज्जा तथा कोरिथयन अंदरुनी सज्जा के साथ बनाया गया है । कैथेड्रल का बाह्य हिस्सा शैली की सादगी के लिए उल्लेखनीय है ।

मलेरिये कि दवाई वाला पेंड़

  मलेरिये कि दवाई वाला पेंड़   कुनैन के पेड़ को ज्वर छाल वृक्ष भी कहते हैं , क्योंकि यह सबसे पुराना और महत्त्वपूर्ण मलेरिया रोधी ड्रग क्वीनीन ( कुनैन ) का स्रोत है। ड्रग इस पेड़ की छाल से प्राप्त होती है। यह पादप एक सदाहरित वृक्ष है , जो 700 से 2750 मीटर तक की ऊंचाई पर उगता है। इसके लिए ठडी पहाड़ी , जहां ठीक प्रकार उगता है। इसके लिए ठंडी पहाड़ी ढलाने चाहिए , जहां ठीक प्रकार से वितरित वर्षा 200 से.मी. से ऊपर हो। पादप हल्की , जल निकासी वाली अक्षत वन्य मिट्टी में सबसे अच्छा उगते हैं , जो ह्यूमस से भरपूर हो और जिसका pH 4.5 से 6.5 के बीच हो। कुनैन वृक्ष ( सिनकोना ) की कई जातियां हैं , जिनसे औषधि निकलती हैं , लेकिन सबसे ज्यादा उत्पादन लेजर छाल वृक्ष ( सिनकोना लेजरियाना ) से होता है। कुनैन वृक्ष जातियों से करीब 30 ऐल्कोलॉइड अलग किए जा चुके हैं , जिनमें से क्विनीन , क्विनीडीन , सिनकोनीन और सिनकोनिडीन सबसे मुख्य हैं। मूल छाल में ऐल्केलॉइडों की अधिकतम मात्रा होती है , लेकिन क्विनीन की सबसे अधिक मात्रा तना छाल में होती है। फिर भी कुछ संश्लेषित मलेरिया रोधी औषधियां बाजार में उपलब्ध है। सि

जानिए नीलकंठेश्‍वर मंदिर उदरपुर के बारे में ।

  नीलकंठेश्‍वर मंदिर उदरपुर   11 वीं शताब्दी में हुआ था इस मंदिर . का निर्माण। मंदिर के आसपास विशाल जलाशय बनाया गया था , जो अब खत्म हो चुका है। 16वीं शताब्दी के आसपास की शाही मस्जिद भी यहां मौजूद है। विदिशा जिले के ग्राम उदयपुर में स्थित शिव मंदिर का निर्माण परमार राजा भोज के पुत्र उदयादित्य ने कराया था। गर्भगृह में शिवलिंग तक सूर्य की किरणें पहुंचती हैं। विशालता , पाषाण शिल्प के इस नायाब नमूने में खजुराहो के मंदिर सी समानता नजर आती है। 22 किमी दूरी है गंजबासौदा स्टेशन से उदयपुर गांव की। 11 वीं शताब्दी के ही पशुवराह की सुंदर कृति यहां से सात किमी दूर मुरादपुर में स्थित है , जहां लेटे हनुमान की प्राचीन प्रतिमा भी है।

बिहार की नहरें

  बिहार की नहरें   बिहार में कृषि योग्य पर्याप्त भूमि होने के बावजूद कृषि का स्तर सामान्य है। पूर्वी भाग में तो वर्षा हो जाती है , किन्तु पश्चिमी भाग में वर्षा का स्तर न्यून ही है। इस क्षेत्र में सिंचाई के लिए नहरों पर निर्भरता अधिक है। यहां भी बहुत - सी नहरें हैं। यदि सोन नहर की बात की जाए तो इस नहर का निर्माण सोन नदी के जल से किया गया है। इस नहर की दो शाखाएं हैं- पूर्वी और पश्चिमी। सोन नहर की पूर्वी शाखा वारुन से निकाली गयी है। इस शाखा द्वारा औरंगाबाद , गया और पटना जिलों की सिंचाई होती है। बिहार की ही एक अन्य नहर त्रिवेणी नहर भी है। इस नहर का निर्माण गण्डक नदी के जल से किया गया है। यह नहर त्रिवेणी ( नेपाल की सीमा के समीप ) से निकाली गई है। इस नहर से बेतिया जिले की भूमि की सिंचाई की जाती है । इसी तरह ढाका और तेऊर नहरों की बात की जाए तो इन नहरों का निर्माण चम्पारण जिले के लालवाकिया और तेऊर नदियों के जल से किया गया है। इस नहर से चम्पारण के उत्तरी - पूर्वी भाग की भूमि की सिंचाई की ' जाती है। कमला नहर का निर्माण कमला नदी पर किया गया है।

जानिए कुछ ख़ास बाते सर्वोच्‍च न्‍यायालय, के बारे में।

  जानिए कुछ ख़ास बाते सर्वोच्‍च न्‍यायालय , के बारे में।   भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारत का सर्वोच्च न्यायिक निकाय और संविधान के तहत भारत का सर्वोच्च न्यायालय है। यह सबसे वरिष्ठ संवैधानिक न्यायालय है , और इसमें न्यायिक (judicial review) समीक्षा की शक्ति है। भारत के मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख और मुख्य न्यायाधीश होते हैं। इसे भारत में सबसे शक्तिशाली संस्थान माना जाता है , यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और विभिन्न सरकारी प्राधिकरणों (authorities) के साथ-साथ केंद्र सरकार बनाम राज्य सरकारों या राज्य सरकारों बनाम देश में किसी अन्य राज्य सरकार के बीच विवादों को निपटाने के लिए आवश्यक है। संविधान के अनुच्छेद 142 के अनुसार , सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को लागू करना भारत के राष्ट्रपति का कर्तव्य है और न्याय के हित में आवश्यक समझे जाने वाले किसी भी आदेश को पारित करने के लिए न्यायालय को अंतर्निहित क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है।   भारत का सार्वेच्‍च न्‍यायालय 28 जनवरी 1950 को अस्तित्‍व में आया। इससे पहले 1986 में इंडियन हाईकोर्ट्स एक्‍ट तैयार किया गया ,

चंदा मामा के बारे में यह जानकारी नहीं होगी आपके पास!

        चंदा मामा के बारे में यह जानकारी नहीं होगी आपके पास! चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है। पृथ्वी के व्यास के लगभग एक-चौथाई (ऑस्ट्रेलिया की चौड़ाई जीतना) पर, यह अपने ग्रह के आकार की तुलना में सौर मंडल का सबसे बड़ा प्राकृतिक उपग्रह है, और किसी भी बौने ग्रह से बड़ा है। सबसे अधिक रूप से यह माना जाता है कि चंद्रमा लगभग 4.51 अरब साल पहले बना था, पृथ्वी के कुछ समय बाद नहीं, चंद्रमा सौर मंडल का पांचवां सबसे विशाल प्राकृतिक उपग्रह है। पृथ्‍वी के मध्‍य से चन्‍द्रमा के मध्‍य तक की दूरी 384403 किलोमिटर है। यह दूरी पृथ्‍वी की परिधि की तीन गुना है। चन्‍द्रमा का एक हिस्‍सा हमेशा पृथ्‍वी की ओर होता है। यदि चन्‍द्रमा पर खड़े होकर पृथ्‍वी को देखें तो पृथ्‍वी साफ-साफ उपने अक्ष पर घूर्णन करती हुई नजर आएगी, लेकिन आसमान में उसकी सिथति सदा स्थिर बनी रहेगी। सूर्य के बाद आसमान में सबसे अधिक चमकदार निकाय चन्‍द्रमा है।  समुद्री ज्‍वार और भाटा चन्‍द्रमा की गुरूत्‍वाकर्षण शक्ति के कारण ही आते हैं। सोवियत रार्ष्‍ट का लूना-1 लक्ष्‍य तक नहीं पहुंचा और सूर्य की कक्षा में जा गिरा। लूना-2 पहला मानव-निर

इन खास रंगों का राज क्‍या है?

  इन खास रंगों का राज क्‍या है ?   फुटबॉल ब्‍लैक एंड व्‍हाइट क्‍यों- पहले फुटबॉल एकरंगी हुआ करती थी , लेकिन 1970 में मैक्सिकों में खेले गए फुटबॉल विश्‍व कप में पहली बार काले-सफेद पैनलों की डिजाइन वाली फुटबॉल तैयार की गई। दरअसल टीवी पर इस मैच का लाइव प्रसारण होना था , तब एडिडास कंपनी ने इस डिजाइन के बारे में सोचा ताकि दर्शकों को ब्‍लैक एंड वहाइट स्‍क्रीन पर फुटबॉल के मूवमेंट्स आसानी से नजर आ जाएं। इस फटबॉल को दर्शकों के साथ-साथ खिलाडियों और रेफरीज ने भी खूब पसंद किया , क्‍योंकि यह आसानी से नजर आती थी। बबलगम गुलाबी रंग की क्‍यों - फ्लीयर च्‍यूंगम कंपनी के कर्मचारी वाल्‍टर डीमर आए दिन नए-नए प्रकार के च्‍यूंगम बनाने की कोशिशि करते थे। वर्ष 1928 में भी एक दिन खाली वक्‍त में यह 23 वर्षीय कर्मचारी एक कम चिकने वाली और लचीली च्‍यूंगम बनाने की कोशिश कर रहा था। उन्‍होंने मुंह में लेकर देखा , इससे बबल्‍स वाकई काफी बड़े बन रहे थे। संयोग से उस वक्‍त फैक्‍टरी में गुलाबी रंग तैयार था। वाल्‍टर ने इसे आकर्षक बनाने के लिए गुलाबी रंग डाल दिया। तब से यह रंग बबलगम्‍स के लिए र्टेडमार्क ही बन गया।

सल्‍तनतकालीन है यह नहर !

  सल्‍तनतकालीन है यह नहर   भारत में स्‍वतंत्रता की प्राप्ति के बाद नहरों का सवार्धिक विकास पंजाब तथा हिरयाणा में ही हुआ था। इन राज्‍यों की प्रमुख नहरों में पश्चिमी यमुना नहर मुख्‍य है। इस नहर का निर्माण यमुना नदी के जल से किया गया है। मूल रूप से इसका निर्माण सल्‍तनतकालीन तुगलक शासक फिरोजशाह ने 14वीं शताब्‍दी में करवाया था। 17वीं शताब्‍दी में शेरशाह सूरी ने और 1886 में ब्रिटिश शासन के दौरान नहर का पुननिर्माण किया गया। यह नहर ताजेवाला (अम्‍बाला जिले के समीप) से निकाली गई। इस नहर की कुल लम्‍बाई 3040 किलोमिटर है , इस नहर से करनाल और हिसार (हरियाणा) तथा पटियाला (पंजाब) के साथ दिल्‍ली और राजस्‍थान में सिंचाई की व्‍यवस्‍था की गई। सरहिन्‍द नहर भी पंजाब और हरियााण की है। इस नहर का निर्माण सतलज नदी के जल के किया गया है। यह नहर रोपड़ (अम्‍बाला) से निकाली गई। इस नहर की कुल लम्‍बाई 6000 किलोमिटर है। (शाखाओं सहित) इस नहर से हिसार तथा पटियाला लुधियाना और फिरोजपुर जिलों में सिंचाई की व्‍यवस्‍था की गई।